शैव सम्प्रदाय


 

शैव धर्म-

शिव भक्ति के विषय में प्रारंभिक जानकारी सिंधुघाटी से प्राप्त होती है। ऋग्वेद में शिव से साम्य रखने वाले देवता को रुद्र कहा गया है। महाभारत में शिव का उल्लेख एक श्रेष्ठ देवता के रूप में हुआ है। मेगस्थनीज ने ई. पू. 4 शता. में शैवमत का उल्लेख किया है।

भगवान शिव तथा उनके अवतारों को मानने वालों को शैव कहते हैं।शैव में शाक्त, नाथ, दसनामी, नाग आदि उप संप्रदाय हैं। महाभारत में माहेश्वरों (शैव) के चार सम्प्रदाय बतलाए गए हैं: (i) शैव (ii) पाशुपत (iii) कालदमन (iv) कापालिक। शैवमत का मूलरूप ॠग्वेद में रुद्र की आराधना में हैं। 12 रुद्रों में प्रमुख रुद्र ही आगे चलकर शिव, शंकर, भोलेनाथ और महादेव कहलाए।  


शैव धर्म से जुड़ी महत्‍वपूर्ण जानकारी और तथ्‍य


 



(1) भगवान शिव की पूजा करने वालों को शैव और शिव से संबंधित धर्म को शैवधर्म कहा जाता है।

(2) शिवलिंग उपासना का प्रारंभिक पुरातात्विक साक्ष्य हड़प्पा संस्कृति के अवशेषों से मिलता है।

(3) ऋग्वेद में शिव के लिए रुद्र नामक देवता का उल्लेख है।

(4) अथर्ववेद में शिव को भव, शर्व, पशुपति और भूपति कहा जाता है।

(5) लिंगपूजा का पहला स्पष्ट वर्णन मत्स्यपुराण में मिलता है।

(6) महाभारत के अनुशासन पर्व से भी लिंग पूजा का वर्णन मिलता है।

(7) वामन पुराण में शैव संप्रदाय की संख्या चार बताई गई है:

(i) पाशुपत
(ii) काल्पलिक
(iii) कालमुख
(iv) लिंगायत

(7) पाशुपत संप्रदाय शैवों का सबसे प्राचीन संप्रदाय है। इसके संस्थापक लवकुलीश थे जिन्‍हें भगवान शिव के 18 अवतारों में से एक माना जाता है।

(8) पाशुपत संप्रदाय के अनुयायियों को पंचार्थिक कहा गया, इस मत का सैद्धांतिक ग्रंथ पाशुपत सूत्र है।

(9) कापालिक संप्रदाय के ईष्ट देव भैरव थे, इस सम्प्रदाय का प्रमुख केंद्र 'शैल' नामक स्थान था।

(10) कालामुख संप्रदाय के अनुयायिओं को शिव पुराण में महाव्रतधर कहा जाता है। इस संप्रदाय के लोग नर-कपाल में ही भोजन, जल और सुरापान करते थे और शरीर पर चिता की भस्म मलते थे।

(11) लिंगायत समुदाय दक्षिण में काफी प्रचलित था। इन्हें जंगम भी कहा जाता है, इस संप्रदाय के लोग शिव लिंग की उपासना करते थे।

(12) बसव पुराण में लिंगायत समुदाय के प्रवर्तक वल्लभ प्रभु और उनके शिष्य बासव को बताया गया है, इस संप्रदाय को वीरशिव संप्रदाय भी कहा जाता था।

(13) दसवीं शताब्दी में मत्स्येंद्रनाथ ने नाथ संप्रदाय की स्थापना की, इस संप्रदाय का व्यापक प्रचार प्रसार बाबा गोरखनाथ के समय में हुआ।

(14) दक्षिण भारत में शैवधर्म चालुक्य, राष्ट्रकूट, पल्लव और चोलों के समय लोकप्रिय रहा।

(15) नायनारों संतों की संख्या 63 बताई गई है जिनमें उप्पार, तिरूज्ञान, संबंदर और सुंदर मूर्ति के नाम उल्लेखनीय है। 


 

(16) पल्लवकाल में शैव धर्म का प्रचार प्रसार नायनारों ने किया।

(17) ऐलेरा के कैलाश मंदिर का निर्माण राष्ट्रकूटों ने करवाया।

(18) चोल शालक राजराज प्रथम ने तंजौर में राजराजेश्वर शैव मंदिर का निर्माण करवाया था।

(19) कुषाण शासकों की मुद्राओं पर शिव और नन्दी का एक साथ अंकन प्राप्त होता है।

(20) शिव पुराण में शिव के दशावतारों के अलावा अन्य का वर्णन मिलता है। ये दसों अवतार तंत्रशास्त्र से संबंधित हैं:

(i) महाकाल (ii) तारा (iii) भुवनेश (iv) षोडश (v) भैरव (vi) छिन्नमस्तक गिरिजा (vii) धूम्रवान (viii) बगलामुखी (ix) मातंग (x) कमल

(21) शिव के अन्य ग्यारह अवतार हैं:

(i) कपाली (ii) पिंगल (iii) भीम (iv) विरुपाक्ष (v) विलोहित (vi) शास्ता (vii) अजपाद (viii) आपिर्बुध्य (ix) शम्भ (x) चण्ड (xi) भव

(22) शैव ग्रंथ इस प्रकार हैं:

(i) श्‍वेताश्वतरा उपनिषद (ii) शिव पुराण (iii) आगम ग्रंथ (iv) तिरुमुराई

(23) शैव तीर्थ इस प्रकार हैं:

(i) बनारस (ii) केदारनाथ (iii) सोमनाथ (iv) रामेश्वरम (v) चिदम्बरम (vi) अमरनाथ (vii) कैलाश मानसरोवर

(24) शैव सम्‍प्रदाय के संस्‍कार इस प्रकार हैं:

(i) शैव संप्रदाय के लोग एकेश्वरवादी होते हैं।
(ii) इसके संन्यासी जटा रखते हैं।
(iii) इसमें सिर तो मुंडाते हैं, लेकिन चोटी नहीं रखते।
(iv) इनके अनुष्ठान रात्रि में होते हैं।
(v) इनके अपने तांत्रिक मंत्र होते हैं।
(vi) यह निर्वस्त्र भी रहते हैं, भगवा वस्त्र भी पहनते हैं और हाथ में कमंडल, चिमटा रखकर धूनी भी रमाते हैं।
(vii) शैव चंद्र पर आधारित व्रत उपवास करते हैं।
(viii) शैव संप्रदाय में समाधि देने की परंपरा है।
(ix) शैव मंदिर को शिवालय कहते हैं जहां सिर्फ शिवलिंग होता है।
(x) यह भभूति तीलक आड़ा लगाते हैं।

(25) शैव साधुओं को नाथ, अघोरी, अवधूत, बाबा, औघड़, योगी, सिद्ध कहा जाता है।

(26)दक्षिण भारत में शैव धर्म का प्रचार नयनार या आडियार संतों द्वारा किया गया, ये संस्था में 63 थे। इनके श्लोकों के संग्रह को तिरुमुडै कहा जाता है। जिसका संकलन नम्बि – अण्डाल – नम्बि ने किया।
(27)इस सम्प्रदाय के अनुयायियों को पंचार्थिक कहा गया। इस मत के प्रमुख सैद्धांतिक ग्रंथ पाशुपतसूत्र हैं।
(28)शैव सम्प्रदायों का प्रथम उल्लेख पतंजलि के महाभाष्य में शिव भागवत नाम से हुआ।
(28)शैव धर्म ( एक सम्प्रदाय के रूप में ) का प्रारंभ शुंग – सातवाहन काल से हुआ। जो गुप्त काल में चरम  सीमा तक पहुँच गया था।
(29)अर्द्धनारीश्वर तथा त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु , महेश शिव ) की पूजा गुप्त काल में आरंभ हुई। समन्वय की यह उदार भावना गुप्त काल की विशेषता है।
(30)अर्द्धनारीश्वर की मूर्ति शिव तथा पार्वती के परस्पर तादात्म्य पर आधारित थी। ऐसी पहली मूर्ति का निर्माण गुप्तकाल में हुआ।
(31)लिंग पूजा का प्रथम स्पष्ट उल्लेख मत्स्य पुराण में हुआ है। महाभारत के अनुशासन पर्व में भी लिंगोपासना का उल्लेख है।
  1. हरिहर के रूप में शिव की विष्णु के रूप में सर्वप्रथम मूर्तियां गुप्त काल में बनायी गई।
  2. शिव की प्राचीनतम मूर्ति गुडीमल्लम लिंग रेनगुंटा से मिली है।
  3. कौषितकी तथा शतपथ ब्राह्मण में शिव के 8 रूपों का उल्लेख है – चार संहारक के रूप में तथा चार सौम्य रूप में ।
  4. शैव सम्प्रदायों का प्रथम उल्लेख पतंजलि के महाभाष्य में शिव भागवत नाम से हुआ।
  5. कश्मीरी शैव शुद्ध रूप से दार्शनिक तथा ज्ञानमार्गी था । इसके कापालिकों के घृणित क्रिया कलापों की निन्दा की गई है। वसुगुप्त इसके संस्थापक थे। शिव को उन्होंने अद्वैत कहा है