कुषाण वंश (लगभग 30 ई. से लगभग 225 ई. तक) ई. सन् के आरंभ से शकों की कुषाण नामक एक शाखा का प्रारम्भ हुआ। विद्वानों ने इन्हें युइशि, तुरूश्क (तुखार) नाम दिया है । युइशि जाति प्रारम्भ में मध्य एशिया में थी। वहाँ से निकाले जाने पर ये लोग कम्बोज-बाह्यीक में आकर बस गये और वहाँ की सभ्यता से प्रभावित रहे। हिंदुकुश को पार कर वे चितराल देश के पश्चिम से उत्तरी स्वात और हज़ारा के रास्ते आगे बढ़ते रहे। तुखार प्रदेश की उनकी पाँच रियासतों पर उनका अधिकार हो गया। ई. पूर्व प्रथम शती में कुषाणों ने यहाँ की सभ्यता को अपनाया। कुषाण वंश के जो शासक थे उनके नाम इस प्रकार है-
कुषाणों के एक सरदार का नाम कुजुल कडफ़ाइसिस था । उसने क़ाबुल और कन्दहार पर अधिकार कर लिया । पूर्व में यूनानी शासकों की शक्ति कमज़ोर हो गई थी, कुजुल ने इस का लाभ उठा कर अपना प्रभाव यहाँ बढ़ाना शुरू कर दिया । पह्लवों को पराजित कर उसने अपने शासन का विस्तार पंजाब के पश्चिम तक स्थापित कर लिया। मथुरा में इस शासक के तांबे के कुछ सिक्के प्राप्त हुए है ।
विम तक्षम लगभग 60 ई. से 105 ई. के समय में शासक हुआ होगा। विम बड़ा शक्तिशाली शासक था। अपने पिता कुजुल के द्वारा विजित राज्य के अतिरिक्त विम ने पूर्वी उत्तर प्रदेश तक अपने राज्य की सीमा स्थापित कर ली। विम ने राज्य की पूर्वी सीमा बनारस तक बढा ली। इस विस्तृत राज्य का प्रमुख केन्द्र मथुरा नगर बना। विम के बनाये सिक्के बनारस से लेकर पंजाब तक बहुत बड़ी मात्रा में मिले है।
कनिष्क कुषाण वंश का प्रमुख सम्राट कनिष्क भारतीय इतिहास में अपनी विजय, धार्मिक प्रवृत्ति, साहित्य तथा कला का प्रेमी होने के नाते विशेष स्थान रखता है। कुमारलात की कल्पनामंड टीका के अनुसार इसने भारतविजय के पश्चात् मध्य एशिया में खोतान जीता और वहीं पर राज्य करने लगा। इसके लेख पेशावर, माणिक्याल (रावलपिंडी), सुयीविहार (बहावलपुर), जेदा (रावलपिंडी), मथुरा, कौशांबी तथा सारनाथ में मिले हैं, और इसके सिक्के सिंध से लेकर बंगाल तक पाए गए हैं। कल्हण ने भी अपनी 'राजतरंगिणी' में कनिष्क, झुष्क और हुष्क द्वारा कश्मीर पर राज्य तथा वहाँ अपने नाम पर नगर बसाने का उल्लेख किया है। इनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि सम्राट कनिष्क का राज्य कश्मीर से उत्तरी सिंध तथा पेशावर से सारनाथ के आगे तक फैला था।
- जैन तीर्थ कर प्रतिमाएँ
- आयागप
- बुद्ध व बोधिसत्व प्रतिमाएँ
- ब्राहम्मण धर्म की मूर्तियाँ
- यक्ष-यक्षिणी, नाग आदि मूर्तियाँ तथा मदिरापान के द्रव्य
- कथाओं से अंकित शिलाप
- वेदिका स्तम्भ, सूचिकाएँ, तोरण, द्वारस्तम्भ, जातियाँ आदि
- कुषाण शासकों की प्रतिमाएँ
नवीन संस्कृति नवीन शासक और नवीन परम्पराओं के साथ नवीन विचारों का प्रार्दुभाव हुआ जिसने एक नवीन कला शैली को जन्म दिया जो 'मथुरा कला' 'कुषाण कला' इस अर्थ में उन सभी शैलियों का समावेश होगा जो सोवियत तुर्किस्तान से सारनाथ तक फैले हुए विशाल कुषाण साम्राज्य प्रचलित थी। इस अर्थ वल्ख की कला, गांधार की यूनानी बौद्ध कला, सिरकप (तक्षशिला) की कुषाण कला तथा मथुरा की कुषाण कला का बोध होगा।
कुषाण कला की विशेषताएँ -
- विविध रुपों में मानव का सफल चित्रण।
- मूर्तियों के अंकन में परिष्कार।
- लम्बी कथाओं के अंकन में नवीनताएँ।
- प्राचीन और नवीन अभिप्रायों की मधुर मिलावट।
- गांधार कला का प्रभाव।
- व्यक्ति विशेष की मूर्तियों का निर्माण।
कुजुल के दो प्रकार के सिक्के मिलते हैं । प्रथम प्रकार के सिक्कों के मुखभाग पर काबुल के अन्तिम यवन शासक हर्मियस का नाम यूनानी लिपि में तथा पृष्ठभाग पर कुजुल का नाम खरोष्ठी लिपि में खुदा हुआ है ।
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कनिष्क
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