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नंद वंश

 


नंद वंश

 

नंद वंश-

नंद वंश की स्थापना महापद्मनंद 344 ई पू से 323 ई पू) ने की। पुराणों के अनुसार वह एक शुद्र शासक था। वह नंद वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक था। शिशुनाग वंश का अंत करने वाला एवं 344 ई.पू. में नंद वंश की स्थापना।

नंद वंश मगध, बिहार का लगभग 344 ई.पू. से 322 ई.पू. के बीच का शासक वंश था, जिसका आरंभ महापद्मनंद से हुआ था।। 344 ई. पू. में महापद्यनन्द नामक व्यक्‍ति ने नन्द वंश की स्थापना की। पुराणों में इसे महापद्म तथा महाबोधिवंश में उग्रसेन कहा गया है। यह नाई जाति का था। उसे महापद्म एकारट, सर्व क्षत्रान्तक आदि उपाधियों से विभूषित किया गया है। महापद्म नन्द के प्रमुख राज्य उत्तराधिकारी हुए हैं- उग्रसेन, पंडूक, पाण्डुगति, भूतपाल, राष्ट्रपाल, योविषाणक, दशसिद्धक, कैवर्त, धनानन्द। इसके शासन काल में भारत पर आक्रमण सिकन्दर द्वारा किया गया। सिकन्दर के भारत से जाने के बाद मगध साम्राज्य में अशान्ति और अव्यवस्था फैली। धनानन्द एक लालची और धन संग्रही शासक था, जिसे असीम शक्‍ति और सम्पत्ति के बावजूद वह जनता के विश्‍वास को नहीं जीत सका। उसने एक महान विद्वान ब्राह्मण चाणक्य को अपमानित किया था।

  • चाणक्य ने अपनी कूटनीति से धनानन्द को पराजित कर चन्द्रगुप्त मौर्य को मगध का शासक बनाया।
  • महापद्मनन्द पहला शासक था जो गंगा घाटी की सीमाओं का अतिक्रमण कर विन्ध्य पर्वत के दक्षिण तक विजय पताका लहराई।
  • नन्द वंश के समय मगध राजनैतिक दृष्टि से अत्यन्त समृद्धशाली साम्राज्य बन गया।
  • व्याकरण के आचार्य पाणिनी महापद्मनन्द के मित्र थे।
  • वर्ष, उपवर्ष, वर, रुचि, कात्यायन जैसे विद्वान नन्द शासन में हुए।
  • शाकटाय तथा स्थूल भद्र धनानन्द के जैन मतावलम्बी अमात्य थे।

महाबोधि वंश में पद्मानंद को महापद्मनंद को का नाम उग्रसेन मिलता है। पुराणों में महापद्मनंद को सर्वक्षात्रान्त्रक ( क्षत्रियों का नाश करने वाला ) तथा भार्गव (दूसरे परशुराम का अवतार) कहा गया है। भारतीय(पुराण,जैन ग्रंथ, महावंश टिका आदि) व विदेशी विवरणों में नंदो को नाई या निम्न कुल का बताया गया है।उसने एकराट में एकछत्रक की उपाधि धारण की। खारवेल के हाथीगुंफा अभिलेख से पता चलता है कि इस नंद राजा ने कलिंग को जीता वह कलिंग से जिनसेन की प्रतिमा उठाकर ले गया तथा कलिंग में एक नहर का निर्माण भी करवाया। महापद्मनंद के पुत्रों में घनानंद सिकंदर का समकालीन था।

महा पदम् नंद की विजय:-

  •  उसे इक्वाकु(कौशल के शासक।इसकी पुष्टि सोमदेव कृत:-कथासरित्सागर से होती है।),
  •  पांचाल(वर्तमान रुहेलखंड-बरेली,बदायू एवं फरुखाबाद),
  •  हैहय(इसकी राजधानी-महिष्मति थी।),
  •  कलिंग(वर्तमान ओडिशा प्रान्त),
  •  अश्मक(आंध्रप्रदेश के निजामाबाद के समीप नवनंददेरा स्थल),
  •  कुरु(मेरठ,दिल्ली तथा थानेश्वर का भू-भाग-राजधानी-इंद्रप्रस्थ),
  •  मैथिली-(नेपाल की सीमा पर स्थित वर्तमान जनकपुर।)
  •  काशेय-मगध का एक प्रान्त।
  •  दितीहोत्रे:-नर्मदा का तटवर्ती क्षेत्र।
  • एवं शूरसेन(आधुनिक ब्रजमंडल) आदि जनपदों को विजित करने वाला बताया गया है।

नंद वंश के राजा:

बौद्ध, जैन और पुराणिक परंपराएं बताती हैं कि 9 नंद राजा थे, लेकिन इन राजाओं के नामों पर स्रोत काफी भिन्न हैं। ग्रीको-रोमन के लेखों अनुसार, नंदा शासन ने दो पीढ़ियों को फैलाया। उदाहरण के लिए, रोमन इतिहासकार कर्टियस (पहली शताब्दी सीई) का सुझाव है कि राजवंश का संस्थापक एक नाई-राजा था, और उसका पुत्र वंश का अंतिम राजा था, जिसे चंद्रगुप्त ने उखाड़ फेंका था। ग्रीक खातों में केवल एक नंद राजा का नाम है- एग्रामेस या ज़ेंडरडेम्स-जो सिकंदर का समकालीन था। “एनग्रामम्स” संस्कृत शब्द “ऑग्रेसन्या” (सचमुच “उग्रसेन का पुत्र या वंशज” हो सकता है, उग्रसेन बौद्ध परंपरा के अनुसार वंश के संस्थापक का नाम है)।

पुराण, भारत में संकलित  4 वीं शताब्दी सीई (लेकिन शायद पहले के स्रोतों पर आधारित), यह भी बताता है कि नंदों ने दो पीढ़ियों तक शासन किया। पुराण परंपरा के अनुसार, राजवंश के संस्थापक महापद्म थे: मत्स्य पुराण उन्हें 88 साल का एक अविश्वसनीय रूप से लंबा शासन प्रदान करता है, जबकि वायु पुराण में केवल 28 वर्षों के रूप में उनके शासनकाल की लंबाई का उल्लेख है। पुराणों में आगे कहा गया है कि महापद्म के 8 पुत्रों ने कुल 12 वर्षों तक उसके बाद उत्तराधिकार में शासन किया, लेकिन इनमें से केवल एक पुत्र का नाम: सुकालपा। वायु पुराण की एक लिपि ने उन्हें “सहल्या” नाम दिया है, जो स्पष्ट रूप से बौद्ध पाठ दिव्यवदना में वर्णित “सहालिन” से मेल खाती है। विष्णु पुराण के एक टीकाकार धुंडीराज ने नंदा राजाओं में से एक का नाम सर्वथा-सिद्धि बताया और कहा कि उनका पुत्र मौर्य था, जिसका पुत्र चंद्रगुप्त मौर्य था। हालाँकि, पुराण स्वयं नंदा और मौर्य राजवंशों के बीच किसी भी संबंध की बात नहीं करते हैं।

नन्द वंश के राजाओं की सूची नीचे दी गई है:-

  1. उग्रसेन
  2. पंडूक
  3. पाण्डुगति
  4. भूतपाल
  5. राष्ट्रपाल
  6. योविषाणक
  7. दशसिद्धक
  8. कैवर्त
  9. धनानन्द

 

शासन प्रबंध

अपार धन दौलत

नंदो का राजकोष धन से भरा रहता था, जिसमें 99 करोड़ की अपार स्वर्ण मुद्राएं थी ।इनकी आर्थिक संपन्नता का मुख्य कारण सुव्यवस्थित लाभों उन्मुखी विदेशी एवं आंतरिक व्यापार था। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपनी यात्रा वर्णन में उल्लेख किया है कि "नंद राजा के पास खजाने थे इस में 7 प्रकार के बहुमूल्य कीमती पत्थर थे"।

नंद वंश की उपलब्धियां

नंद वंश के संस्थापक सम्राट महापदम नंद ने मगध को एक विशाल साम्राज्य में परिणत कर दिया । भारतीय इतिहास में पहली बार एक ऐसे साम्राज्य की स्थापना हुई इसकी सीमाएं गंगा घाटी के मैदानों का अतिक्रमण कर गई। विंध्य पर्वत के दक्षिण में विजय वैजयंती फहराने वाला पहला मगध का शासक महापद्मनंद ही था, खारवेल का हाथीगुंफा अभिलेख से भी कलिंग विजय सूचित होती है। इसके अनुसार नंद राजा जिनसेन की एक प्रतिमा उठा ले ले गए थे तथा उन्होंने कलिंग में तनसुली नहर का भी निर्माण कराया था। मैसूर के 12वीं शती के लेखों में भी नंदो द्वारा कुंतल जीते जाने का विवरण सुरक्षित है क्लासिकल लेखकों के विवरण से पता चलता है की अग्रिम इज का राज्य पश्चिम में व्यास नदी तक फैला था यह भूभाग महापद्मनंद द्वारा ही जीता गया था क्योंकि अगर 20 को किसी भी विजय का श्रेय नहीं प्रदान किया गया है उसकी विजयों के साथ ही क्षत्रियों का राजनीतिक प्रवृत्ति समाप्त हुआ इस विशाल साम्राज्य में एकतंत्रत्मक शासन व्यवस्था की स्थापना की गई। 

नंद वंश के उत्तराधिकारी

1.पंडुक अथवा सहलिन (बंगाल का सेन वंश) नंदराज महापद्मनंद के जेष्ट पुत्र पंडुक जिनको पुराणों में सहल्य अथवा सहलिन कहा गया है ।नंदराज के शासनकाल में उत्तर बिहार में स्थित वैशाली के कुमार थे ।तथा उनकी मृत्यु के बाद भी उनके वंशज मगध साम्राज्य के प्रशासक के रूप में रहकर शासन करते रहे। इन के वंशज आगे चलकर पूरब दक्षिण की ओर बंगाल चले गए हो और अपने पूर्वज चक्रवर्ती सम्राट महापदम नंद के नाम पर सेन नामांतरण कर शासन करने लगे हो और उसी कुल से बंगाल के आज सूर्य राजा वीरसेन हुई जो मथुरा सुकेत स्थल एवं मंडी के सेन वंश के जनक बन गए जो 330 ईसवी पूर्व से 1290 ईस्वी पूर्व तक शासन किए।

2.पंडू गति अथवा सुकल्प (अयोध्या का देव वंश) आनंद राज के द्वितीय पुत्र को महाबोधि वंश में पंडुगति तथा पुराणों में संकल्प कहा गया है ।कथासरित्सागर के अनुसार अयोध्या में नंद राज्य का सैन्य शिविर था जहां संकल्प एक कुशल प्रशासक एवं सेनानायक के रूप में रहकर उसकी व्यवस्था देखते थे तथा कौशल को अवध राज्य बनाने में अपनी अहम भूमिका निभाई अवध राज्य आणि वह राज्य जहां किसी भी प्रकार की हिंसा या बलि पूजा नहीं होती हो जबकि इसके पूर्व यहां पूजा में पशुबलि अनिवार्य होने का विवरण प्राचीन ग्रंथों में मिलता है जिस को पूर्णतया समाप्त कराया और यही कारण है कि उन्हें सुकल्प तक कहा गया है यानी अच्छा रहने योग्य स्थान बनाने वाला इन्हीं के उत्तराधिकारी 185 ईस्वी पूर्व के बाद मूल्य वायु देव देव के रूप में हुए जिनके सिक्के अल्मोड़ा के पास से प्राप्त हुए हैं

3.भूत पाल अथवा भूत नंदी (विदिशा का नंदी वंश) चक्रवर्ती सम्राट महापद्मनंद के तृतीय पुत्र भूत पाल विदिशा के कुमार अथवा प्रकाशक थे।नंदराज के शासनकाल में उनकी पश्चिम दक्षिण के राज्यों के शासन प्रबंध को देखते थे। विदिशा के यह शासक कालांतर में पद्मावती एवं मथुरा के भी शासक रहे तथा बौद्ध धर्म का व्यापक प्रचार-प्रसार की इतिहासकारों ने भूतनंदी के शासनकाल को 150 वर्ष पूर्व से मानते हैं।

4.राष्ट्रपाल (महाराष्ट्र का सातवाहन कलिंग का मेघ वाहन वंश) महाबोधि वंश के अनुसार नंदराज के चौथे पुत्र राष्ट्रपाल थे। राष्ट्रपाल के कुशल प्रशासक एवं प्रतापी होने से इस राज्य का नाम राष्ट्रपाल के नाम पर महाराष्ट्र कहा जाने लगा यह गोदावरी नदी के उत्तर तट पर पैठन अथवा प्रतिष्ठान नामक नगर को अपनी राजधानी बनाई थी। राष्ट्रपाल द्वारा ही मैसूर के क्षेत्र, अश्मक राज्य एवं महाराष्ट्र के राज्यों की देखभाल प्रशासक के रूप में की जाती थी जिसकी केंद्रीय व्यवस्था नंदराज महापद्मनंद के हाथों में रहती थी। राष्ट्रपाल के पुत्र ही सातवाहन एवं मेघवाल थे ।जो बाद में पूर्वी घाट उड़ीसा क्षेत्र पश्चिमी घाट महाराष्ट्र क्षेत्र के अलग-अलग शासक बन गए। ब्राहमणी ग्रंथों पुराणों में इन्हें आंध्र भृत्य कहा गया है।

5.गोविशाणक(उत्तराखंड का कुलिंद वंश) महाबोधि वंश के अनुसार नंदराज महापद्मनंद के पांचवे पुत्र गोविशाणक थे। नंदराज ने उत्तरापथ में विजय अर्जित किया था। महापद्मनंद द्वारा गोविशाणक को प्रशासक बनाते समय एक नए नगर को बसाया गया था ।वहां उसके लिए किला भी बनवाया गया। इसका नामकरण गोविशाणक नगर रखा गया।उनके उत्तराधिकारी क्रमशः विश्वदेव,धन मुहूर्त,वृहतपाल,विश्व शिवदत्त,हरिदत्त, शिवपाल,चेतेश्वर,भानु रावण,हुई जो लगभग 232 ईसवी पूर्व से 290 ईसवी तक शासन किया।

6. दस सिद्धक चक्रवर्ती सम्राट महापद्मनंद के छठवें पुत्र दस सिद्धक थे। नंद राज्य की एक राजधानी मध्य क्षेत्र के लिए वाकाटक मे थी जहां दस सिद्धक ने अपनी राजधानी बनाया। किंतु इनके पिता महा नंदिवर्धन के नाम पर नंदराज द्वारा बताए गए सुंदर नगर नंदिवर्धन नगर को भी इन्होंने अपनी राजधानी के रूप में प्रयुक्त किया जो आज नागपुर के नाम से जाना जाता है। सर्वप्रथम विंध क्षेत्र में अपनी शक्ति का संवर्धन किया इसलिए उन्हें विंध्य शक्ति भी कहा गया। जिन्होंने 250 ईसवी पूर्व से 510 ईसवी तक शासन किया।

7. कैवर्त नंदराज महापद्मनंद के सातवें पुत्र थे जिनका वर्णन महाबोधि वंश में किया गया है ।यह एक महान सेनानायक एवं कुशल प्रशासक थे। अन्य पुत्रों की तरह कैवर्त किसी राजधानी के प्रशासक ना होकर बल्कि अपने पिता के केंद्रीय प्रशासन के मुख्य संचालक थे ।तथा सम्राट महापद्मनंद जहां कहीं भी जाते थे, मुख्य अंगरक्षक के रूप में उनके साथ साथ रहते थे प्रथम पत्नी से उत्पन्न दोनों छोटे पुत्र कैवर्त और घनानंद तथा दूसरी पत्नी पुरा से उत्पन्न चंद्रनंद अथवा चंद्रगुप्त तीनों पुत्र नंद राज के पास पाटलिपुत्र की राजधानी में रहकर उनके कार्यों में सहयोग करते थे। जिसमें चंद्रगुप्त सबसे छोटा व कम उम्र का था। कैवर्त की मृत्यु सम्राट महापद्मनंद के साथ ही विषयुक्त भोजन करने से हो गई जिससे उनका कोई राजवंश आगे नहीं चल सका।

8. सम्राट घनानंदसम्राट महापद्मनंद की प्रथम पत्नी महानंदिनी से उत्पन्न अंतिम पुत्र था। घनानंद जब युवराज था तब आनेको शक्तिशाली राज्यों को मगध साम्राज्य के अधीन करा दिया। नंदराज महापद्मनंद की मृत्यु के बाद 326 ईसवी पूर्व में घनानंद मगध का सम्राट बना। नंदराज एवं भाई कैवर्त की मृत्यु के बाद यह बहादुर योद्धा शोकग्रस्त रहने लगा। फिर भी इसकी बहादुरी की चर्चा से कोई भी इसके साम्राज्य की तरफ आक्रमण करने की हिम्मत नहीं कर सका। विश्वविजेता सिकंदर ने भी नंद साम्राज्य की सैन्यशक्ति एवं समृद्धि देख कर ही भारत पर आक्रमण करने की हिम्मत नहीं की और वापस यूनान लौट जाने में ही अपनी भलाई समझी। सिकंदर के सेनापति सेल्यूकस की सैनिक मदद से इनका सौतेला भाई चंद्रगुप्त 322 ईसवी पूर्व में मगध की सत्ता प्राप्त करने की लड़ाई किया जिससे युद्ध के दौरान घनानंद की मृत्यु हो गई और मगध की सत्ता चंद्रगुप्त को प्राप्त हुई।

9. चंद्रनंद अथवा चंद्रगुप्त सम्राट महापदमनंद की मुरा नामक दूसरी पत्नी से उत्पन्न पुत्र का नाम चंद्रगुप्त चंद्रनंद था। जिसे मौर्य वंश का संस्थापक कहा गया है मुद्राराक्षस में चंद्रगुप्त को नंद की संतान तथा विष्णु पुराण में चंद्रगुप्त को नंदवंशी राजा कहा गया है।

 

नंद वंश के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य:

  • नंद शासक मौर्य साम्राज्य के पूर्ववर्ती राजा थे।
  • स्थानीय और जैन परम्परावादियों से पता चलता है कि इस वंश के संस्थापक महापद्म, जिन्हें महापद्मपति या उग्रसेन भी कहा जाता है, समाज के निम्न वर्ग के थे।
  • महापद्म ने अपने पूर्ववर्ती शिशुनाग राजाओं से मगध की बाग़डोर और सुव्यवस्थित विस्तार की नीति भी जानी। उनके साहस पूर्ण प्रारम्भिक कार्य ने उन्हें निर्मम विजयों के माध्यम से साम्राज्य को संगठित करने की शक्ति दी।
  • पुराणों में उन्हें सभी क्षत्रियों का संहारक बतलाया गया है। उन्होंने उत्तरी, पूर्वी और मध्य भारत स्थित इक्ष्वाकु, पांचाल, काशी, हैहय, कलिंग, अश्मक, कौरव, मैथिल, शूरसेन और वितिहोत्र जैसे शासकों को हराया। इसका उल्लेख स्वतंत्र अभिलेखों में भी प्राप्त होता है, जो नन्द वंश के द्वारा गोदावरी घाटी- आंध्र प्रदेश, कलिंग- उड़ीसा तथा कर्नाटक के कुछ भाग पर कब्ज़ा करने की ओर संकेत करते हैं।
  • महापद्म के बाद पुराणों में नंद वंश का उल्लेख नाममात्र का है, जिसमें सिर्फ सुकल्प (सहल्प, सुमाल्य) का ज़िक्र है, जबकि बौद्ध महाबोधिवंश में आठ नामों का उल्लेख है। इस सूची में अंतिम शासक धनानंद का उल्लेख संभवत: अग्रामी या जेन्ड्रामी के रूप में है और इन्हें यूनानी स्त्रोतों में सिकंदर महान का शक्तिशाली समकालीन बताया गया है।
  • इस वंश के शासकों की राज्य-सीमा व्यास नदी तक फैली थी। उनकी सैनिक शक्ति के भय से ही सिकंदर के सैनिकों ने व्यास नदी से आगे बढ़ना अस्वीकार कर दिया था।
  • कौटिल्य की सहायता से चंद्रगुप्त मौर्य ने 322 ई. पूर्व में नंदवंश को समाप्त करके मौर्य वंश की नींव डाली।
  • इस वंश में कुल नौ शासक हुए – महापद्मनंद और बारी-बारी से राज्य करने वाले उसके आठ पुत्र।
  • इन दो पीढ़ियों ने 40 वर्ष तक राज्य किया।
  • इन शासकों को शूद्र माना जाता है।
  • नंद वंश का संक्षिप्त शासनकाल मौर्य वंश के लंबे शासन के साथ प्रारंभिक भारतीय इतिहास में महत्त्वपूर्ण संक्रमण काल को दर्शाता है।
  • गंगा नदी में (छठी से पांचवी शताब्दी ई.पू.) भौतिक संस्कृति में बदलाव आया, जिसका विशेष लक्षण कृषि में गहनाता और लौह तकनीक का बढता इस्तेमाल था। इससे कृषि उत्पादन में उपयोग से अधिक वृद्धि हुई और वाणिज्यिक और शहरी केंद्रों के विकास को बढ़ावा मिला।
  • सिकंदर के काल में नंद की सेना में लगभग 20,000 घुड़सवार, 2,00,000 पैदल सैनिक, 2000 रथ और 3000 हाथी। प्रशासन में नंद राज्य द्वारा उठाए गए क़दम कलिंग (उड़ीसा) में सिचाई परियोजनाओं के निर्माण और एक मंत्रिमंडलीय परिषद के गठन से स्पष्ट होते हैं।
 

धनानन्द:-

अंतिम एवं सर्वाधिक प्रसिद्ध नन्द शासक जो सिकन्दर महान का समकालीन था। यूनानी लेखकों ने इसे “अग्रभोज” कहा है। इसी के शासनकाल में सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण किया था। नंद वंश के अंतिम शासक धननन्द से उसकी प्रजा अत्यधिक घृणा करती थी।

उसने विद्धान ब्राह्मण विष्णुगुप्त(चाणक्य) का अपमान किया था। सिकन्दर के जाने के बाद मगध साम्राज्य में अशांति व अव्यवस्था फैल गई थी। परिणामस्वरूप चंद्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य की सहायता से मगध पर अधिकार कर लिया व मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।

नन्द वंश के 9 राजा हुए थे अतः इसे “नवनंद” कहा जाता है। इनका साम्राज्य विंध्याचल पर्वतमाला के दक्षिण तक फैला था। महापदम् नंद विंध्यपर्वत के दक्षिण में मगध साम्राज्य का विस्तार करने वाला प्रथम शासक था।

  • भद्रसाल:- महापदम् नन्द का सेनापति।
  • अग्रमीज:- धन नंद का यूनानी नाम।
  • साइबेरिया:- नन्द यहाँ से स्वर्ण मंगाते थे।
  • पाणिनी:- महापदम् नन्द के मित्र थे।इन्होंने पाटली पुत्र में शिक्षा ग्रहण की।
  • वर्ष, उपवर्ष, वररुचि, कात्यायन:- नंद काल के विद्वान।

नंद शासक जैन मत पोषक थे।

ऐतिहासिक स्रोत

  • नंदो को समस्त भारतीय एवं विदेशी साक्ष्य तत्कालीन महत्वपूर्ण क्षत्रिय नाई(न्यायी) होने का प्रमाणित करते हैं।
  • चक्रवर्ती सम्राट महापद्मनंद का इतिहास उड़ीसा में उदयगिरि पर्वत माला से दक्षिणी भाग में एक प्राकृतिक गुफा है, इसे हाथी गुफा कहा जाता है उसमें प्राप्त पाली भाषा से मिलती-जुलती प्राकृत भाषा और ब्रम्ही लिपि के 17 पंक्तियों में लिखे अभिलेख से प्राप्त होता है जिसके पंक्ति 6 और 12 में नंदराज के बारे में कलिंग के राजा खारवेल द्वारा उत्कीर्ण कराया माना जाता है। इस हाथी गुफा अभिलेख को ईसा पूर्व पहली सदी का माना गया है।
  • महाराष्ट्र में निजामाबाद जिले के पश्चिम में कुछ दूर पर "नौ नंद देहरा"( नांदेड़ वर्तमान में) नामक नगर स्थित है। इससे यह पता चलता है कि अश्मक वंश की प्राचीन भूमि भी नौ नंदो के राज्य के क्षेत्र में आ गई थी।
  • कथासरित्सागर में एक स्थान पर अयोध्या में नंद के शिविर (कटक) का प्रसंग आया है।
  • मैसूर के कई अभिलेखों के अनुसार कुंतलो पर नंदो का शासन था जिसमें बंबई प्रेसिडेंसी का दक्षिणी भाग तथा हैदराबाद राज्य का निकटतम क्षेत्र और मैसूर राज्य सम्मिलित था।
  • बौद्ध ग्रंथ महाबोधीवंशम एवं अंगुत्तर निकाय में नंदवंश के अत्यधिक प्रमाण है।
  • वायु पुराण की कुछ पांडुलिपियों के अनुसार नंद वंश के प्रथम राजा ने 28 वर्ष तक राज किया और उसके बाद उनके पुत्रों ने 12 वर्ष तक राज्य किया।
  • महावंश के अनुसार नंदू ने 28 वर्ष तक शासन किया और उनके पुत्रों ने 22 वर्ष तक शासन किया।
  • नंद वंश की महानता का विशद विवेचन महर्षि पतंजलि द्वारा रचित महाकाव्य

"महानंद" में किया गया था इसकी पुष्टि सम्राट समुद्रगुप्त द्वारा रचित महाकाव्य "कृष्ण चरित्र" के प्रारंभिक तीन श्लोको से होती है। मगर उक्त महाकाव्य का विवरण मात्र ही शेष है।

  • बृहत्कथा के अनुसार नंदो के शासनकाल में पाटलिपुत्र में सरस्वती एवं लक्ष्मी दोनों का ही वास था।
  • सातवीं सदी के महान विश्व विख्यात चीनी यात्री हुएनसांग ने अपनी यात्रा वर्णन में उल्लेख किया है कि "नंदराजा के पास खजाने थे इस में 7 प्रकार के कीमती पत्थर थे।"
  • जैन ग्रंथों में लिखा है कि समुद्र तक समूचा देश नंद के मंत्री ने अपने अधीन कर लिया था-

समुद्र वसनां शेभ्य:है आस मुदमपि श्रिय:। उपाय हस्तेैरा कृष्य:तत:शोडकृत नंदसात।।

 

 

 

                   Nand dynasty important facts and Quiz

  • सिकंदर के आक्रमण के समय मगध का शासक था– धनानन्द
  • उत्तरी भारत का प्रथम ऐतिहासिक सम्राट कौन था –धनानंद. 
  • किसे उग्रसेन अर्थात भयानक सेना का स्वामी कहा जाता था-  महापद्मनंद. 
  • यूनानी लेखको ने धनानंद को क्या कहा है- अग्रगीज व जेंटर मिज.
  • महापद्म नंद ने उड़ीसा पर आक्रमण करके किसकी मूर्ति को वहाँ से उठा लाया- महावीर स्वामी
  • सर्वक्षत्रान्तक किस कहाँ गया है – महापद्मनन्द को.
  • महापद्मनंद- सूद्र शासक था।
  • घनानंद के – 8 भाई थे।
  •  अभिलेख से प्रकट होता है की नंद राजा के आदेश से एक नहर खोदी गई थी -कलिंग में
  • निम्नलिखित में से कौन सा प्राचीन ग्रंथ है जिसमे चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा नंदों को उखाड़ने के सम्बन्ध उलेख किया गया है? -मुद्राराकशासा 

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