इस वंश में केवल राजा हुए जिनके नाम और राज्यकाल निम्नलिखित हैं –
वासुदेव के उत्तराधिकारी भूमिमित्र के नाम के सिक्के पंचांल क्षेत्र में पाए गये हैं. “कण्वस्य” लिखे ताम्बे के सिक्के विदिशा और कौशाम्बी (वत्स क्षेत्र) में भी पाए गये हैं. भूमिमित्र ने 14 वर्ष शासन किया और उसके पश्चात् उसका बेटा नारायण 12 वर्ष तक राजा रहा. नारायण का पुत्र सुशर्मन कण्व वंश का अंतिम राजा था.इन चारों राजाओं ने कुल मिलाकर 45 वर्ष तक राज्य किया। इनका शासन काल 73 ई. पू. पूर्व से 28 ई. पू. तक समझा जा सकता है। पुराणों में इन 'कण्व' या 'काण्वायन' राजाओं को 'शुंग भृत्य' के नाम से कहा गया है। यह तो स्पष्ट ही है कि वासुदेव कण्व शुंग राजा देवभूति का अमात्य था। पर चारों कण्व राजाओं को शुंग-भृत्य कहने का अभिप्राय: शायद यह है कि नाममात्र को इनके समय में भी शुंग वंशी राजा ही सिंहासन पर विराजमान थे, यद्यपि सारी शक्ति इन भृत्यों के हाथ में ही थी। सम्भवत: इसीलिए कण्वों के बाद जब आंध्रों के मगध साम्राज्य पर अधिकार कर लेने का उल्लेख आता है तो यह लिखा गया है कि उन्होंने कण्व और शुंग-दोनों को परास्त कर शक्ति प्राप्त की।
पुराणों में एक स्थान पर कण्व राजाओं के लिए 'प्रणव-सामन्त' विशेषण भी दिया गया है, जिससे यह सूचित होता है कि कण्व राजा ने अन्य राजाओं को अपनी अधीनता स्वीकार कराने में भी सफलता प्राप्त की थी। पर यह राजा कौन-सा था, इस विषय में कोई सूचना उपलब्ध नहीं है। इस वंश के अन्तिम राजा सुशर्मा को लगभग 28 ई. पू. में आंध्र सातवाहन वंश के संस्थापक सिमुक ने मार डाला और इसके साथ ही कण्व वंश का अंत हो गया।
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